दिल्ली ब्लागर मीट- जहर है कि प्यार है उम्मा उम्मा (पद्म सिंह)

आज की दिल्ली में हुई ब्लागर मिलन समारोह में मैंने भी शिरकत की …(खा- म-खा…..??) मुझसे वहां श्री  अविनाश वाचस्पति  जी के अतिरिक्त कोई परिचित नहीं था… यद्यपि मिलन काफी अच्छे माहौल में सहजता से संपन्न हुआ कई विषयों पर चर्चा हुई पर कहीं न कहीं चर्चा  ब्लाग जगत कि चिर परिचित समस्या के इर्द गिर्द घूमती रही … पर  तकनीकी विषयों पर भी बहुत सार्थक बात हुई जिनपर जल्दी है पोस्टें आने वाली हैं ……. चर्चा ये भी हुई कि हम पश्चिम की चकाचौंध में अपने मूल्यों को न भूलें … जो जहां अच्छा है ग्राह्य है पर अपने मूल्यों के अपमान की कीमत पर नहीं ……. जहां राजीव तनेजा जी कविता जी सतीश सक्सेना जी के साथ साथ लखनऊ से आये श्री सर्वत जमाल जी जैसे ब्लोगर थे तो मेरे जैसे नवोदित ब्लागर भी ..(मुझे सब के नाम याद नहीं हैं). फोटो शोटो खिची … ब्लॉग पते का लेन देन हुआ … खाना शाना सब ठीक रहा .. ब्लाग से सम्बंधित तकनीकी और सामाजिक विषयों पर भी चर्चा हुई ….. और खुशनुमा माहौल में समापन भी हुआ ….. शाम तक दो तीन पोस्टें भी आ गयीं इस बारे में … पर इस बात को देख कर आश्चर्य हुआ(दुःख नहीं) कि किसी ब्लॉग में मेरा ज़िक्र तक नहीं था … जब कि वहां चर्चाएँ थी कि हर व्यक्ति अपने शहर में ब्लोगर मीट्स आयोजित करे और नए ब्लोगर्स को उत्साहित करे … परन्तु कुछ चीज़ें सीखने को मिली कि अच्छा ब्लागर बनना है तो बाजार की भी नब्ज़ देखो …. मजमा लगे इस के लिए डुगडुगी बजानी होगी … तो भैया मै तो न मजमे वाला हूँ और न मेरे से डुगडुगी बजेगी … अगर मुझे अच्छे एक भी पाठक से टिप्पणी, सलाह या आलोचना मिल जाती है  तो मुझे वो अधिक स्वीकार है ….अब ये ब्लोगर मिलन मेरे लिए ज़हर है कि प्यार है ….. भविष्य तय करेगा …… इसी लिए इस पोस्ट का शीर्षक डुगडुगी वाला रखा है …… अंत में अजय झा जी को पुनः इस मीट और बिना मीट के ट्रीट के लिए बधाई और धन्यवाद देते हुए कुछ छंद तुरत फुरत में पका कर पेश है …. स्वाद लें

यद्यपि इस विषय पर लिखते लिखते लेखनियां घिस गयीं पर इन्हें शर्म न आई …….. और आएगी भी नहीं शायद …… पर फिर भी लिखना पड़ता है —


ऐसा ये जनतंत्र है जैसी कोई रेल

नेता कुर्सी के लिए करते  ठेलमपेल

करते ठेलमपेल करो अबकी कुछ ऐसा

छीलें जाकर घास चरावें अपना भैंसा

क्षेत्र वाद, भाषा वाद   इस तरह के नासूर हैं जो अपने ही तन को काट देने को आतुर दीखते हैं … क्या सोचेंगे ऐसी सोच वालों को —

अपनी अपनी ढपलियाँ अपना अपना राग

क्षेत्रवाद के नाम पर , भाल लगाया दाग

भाल लगाया दाग , भारती मैया रोती

इस से अच्छा होता यदि मै बांझन होती

भारत जैसे संप्रभुता संपन्न और एशिया की एक महाशक्ति होने के बावजूद इस के पडोसी जब देखो हमारी सहिष्णुता का मजाक उड़ाते हैं और ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते … बंगला देश और पाकिस्तान तो जग जाहिर है … आजकल माओवादी नेपाल भी भारत को तिरछी नज़र से देखता है और श्रीलंका चाइना को अपने सागर में पोस्ट बनाने देने की दिशा में बढ़ सकता है … क्या ये ढुलमुल नीति हमेशा कारगर रहेगी …? या फिर कुछ इस तरह होना चाहिए ……

एक  बांग्ला देश है ,                  दुसरा पाकिस्तान

चीन और नेपाल भी खींचा करें कमान

खींचा करें कमान सिरी लंका क्या कम है

एक बार अजमा लो जिसमे जितना दम है

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मौसम ने बसंत और होली दोनों  की मस्ती की खबर दे दी है …. होली अभी दूर है पर मन  अभी से मस्त होने लगे तो क्या करिये … सो उतर पड़े कुछ छंद बसंत और होली दोनों से संबद्द कर के मज़े लीजिए

रुत बासंती देख कर वन में लग गयी आग

धरती बदली से कहे, आजा खेलें फाग

आजा खेलें फाग , भाग जागे मनमौजी

रंगों जिसे पाओ मत खोजो औजी भौजी

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ऐसा सुघड़ बसंत है रंगा चले सियार

मन सतरंगी हो चले बिना किसी आधार

बिना किसी आधार , बुजुर्गी ऐसी फड़की

बुढिया भी दिखने लगती है कमसिन लड़की

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फागुन आया भाग से भर ले दो दो घूट

दो दिन की है जिंदगी फिर जायेगी छूट

फिर जायेगी छूट , अभी मस्ती में जी ले

फिर फागुन का पता नहीं है पी ले पी ले

Posted via email from हरफनमौला